हमने तो बचपन से आज तक कलम की लड़ाई कम और ढक्कन की लड़ाई अधिक देखी है । इस की शुरुआत बचपन में हुए खेलों से हुई ,जहां लड़ाई बॉल , बैट , विकेट , ग्लव्स और पैड से शुरू होती और मैदान से होते हुए अंपायर के निर्णय तक पहुँच कर नये खेल के सामान घूँसों और लातों तक पहुँच जाती । और उम्र के पड़ाव के साथ यह लड़ाई चाकुओं , तमंचों के अस्त्रों की सहायता से शहर के गैंग वॉर तक पहुँचते हुए देखी ।
हमें तो खेल की कलाओं की तलाश रहती और आज इस पड़ाव पर भी कब हम बलात्कार जैसे विषय पर ढक्कन ग़ायब देखता हूँ तो लगता है कि हम तो ढक्कन की ही बार बार बोतल, बर्तन और ड्रम तो नहीं समझते रहे तो हमने अपने एक सामाजिक कार्यक्रम में भाग लेने का विचार किया कि ढक्कन कहीं वहाँ ना मिल जाये ।
होली नज़दीक आ रही थी और हमारे ब्लॉक में कुछ संभ्रांत निवासियों द्वारा होली पर आयोजन के किए एक ह्वाट्सऐप ग्रुप बना था और 400/- प्रति सदस्य की लगातार माँग हो रही थी । अतः हमने अपने एक नज़दीकी नवरत्न सरकारी उपक्रम के अति उच्च पद से सेवा निवृत हुए सज्जन को 2000/- दिये और हाथ जोड़ कर बताया कि कम से कम हम और अधिक से अधिक हम अपने बेटे और पत्नी के साथ आयेंगे अतः आप जितना पैसा बचे उस दिन ही दे देना । बचे हुए पैसे का आज भी इंतज़ार है ।बड़े ही विनम्र किंतु आँखी से झलके उनके संशय और चतुराई के प्रकाश के कारण हम उनसे नमस्कार से ज़्यादा दर के कारण नहीं जुड़ पाए ।वह और उनकी धर्म पत्नी के बहुत ही उच्च विचार थे कि उनके घर से सामने वाले घर की सड़क उन्हीं की अता उन्होंने एक तिहाई सड़क पर अपना खूबसूरत मार्वल से सुसज्जित रैंप बना रखा था और उसके बाद एक महक फूल पौधों की बगिया से सड़क पर सुरक्षा कवच अरुणाचल में चीन द्वारा बसायें गाँवों की तरह से फैला रखा था और सामने पड़े ख़ाली घर के बाहर अपनी दो दी कारें खड़ी कर शूरवीर और बुद्धिमानी के नायक होने का सबूत पेश कर रखा था ।
हमे लगता था यही उनके महान होने का कारण का टैंक है जिसका ढक्कन हमे नहीं दिखायी देता है ।