पीछे के दो महीनों मैं पूरे देश में हो रही सामान्य वर्षा में देश की जर्जर इंफ्रास्ट्रक्चर (भले ही वह नया हो ) की हालत पर सामान्य नागरिक ( इसमें राजनीतिक सोच के वर्ग को अलग कर दो ) को सोचने पर मजबूर कर दिया है ।।
नागरिक दोबारा से गड़ित के अध्याय को पढ़ने का सोच रहा है । उसे समझ नहीं आ रहा है कि वह हर वस्तु पर पाँच से अट्ठाईस प्रतिशत पर टैक्स दे रहा है इनकम टैक्स ६० प्रतिशत तक दे रहा है । रोड टैक्स दे रहा है , टोल टैक्स दे रहा है । पैट्रोल , डीज़ल , गैस पर भरपूर बात दे रहा है । वहाँ ख़रीदता है तो २८ से ४८% जीएसटी प्लस सेस दे रह है और वहाँ की क़ीमत और इस टैक्स का १०% रोड टैक्स देता है । पार्किंग टैक्स देता है जो प्रतिदिन महँगा हो रहा है । प्रॉपर्टी टैक्स भी देता है और जब भी बारिश होती है तो उसकी बिजली रूठ जाती है । घर के आगे पानी भर कर घर में भी झील बना देता । सड़कें टूट जाती हैं , ट्रैफिक जाम हो जाता है । सड़कों पर पानी भर जाता । नई नई सड़कों पर भी पानी भर जाता है। जबकि अंग्रेज़ी की बसाई दिल्ली हो या मुंबई के अंग्रेज़ी के बसाये मोहल्लों मैं आज भी इतना भयानक दृश्य देखने को नहीं मिलता ।
देश के बढ़ते हुए कर्ज को देख कर नागरिक भय से काँप जाता है । कोई भी सरकार राज्य या केन्द्र में हो वह इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पर कर्ज लेती है और भरपूर टैक्स लेती है । हर सरकार अपने अधिकारियों और कर्मचारियों की प्रशंसा करते नहीं थकती , तो कमी कहाँ है ?? बेचारा नागरिक सोचता है कि उसने ही कहीं पढ़ाई ग़लत की है वरना वोट तो उसने अपने पसंद की पार्टी और नेता के धरम और जाति को देख कर ही वोट किया था । फिर वह थक कर अपनी क़िस्मत को दोष देकर सोशल मीडिया पर अपना ग़ुस्सा और थकान मिटा लेता है और सोच समझ लेता है कि दूसरे देशों में तो शायद इससे भी अधिक हालत ख़राब होंगे ।
अंत में खाना खाते हुए और उसके बाद जब टीवी पर एंकर के जोश और आवाज़ सुनकर पूर्ण रूप से राष्ट्रभक्ति की सपथ लेकर अपनी जाति , समाज और धर्म के लिए सारे कष्ट सहने तो तैयार होता है ।
उसके अंदर भाव पैदा होता है कि ईश्वर ने इस सब के लिये ही उसे धरती पर भेजा है ।